
केरल का मानसून गोवा की ही तरह खास है। हरा-भरा, हर तरफ हरियाली, पानी और मस्ती। इसीलिए यहां नदियों व पानी के सबसे ज्यादा उत्सव इन्ही दिनों में हुआ करते हैं। केरल की सबसे लोकप्रिय बोट रेस प्रतिस्पर्धाएं मानसून में ही होती हैं, जिन्हें देखने के लिए दुनियाभर से सैलानी जुटते हैं। एक झलक केरल में इन दिनों होने वाले आयोजनों पर-
नेहरू ट्रॉफी बोट रेस: अल्लपुझा के बैकवाटर्स में स्थित पुन्नमडा झील में होने वाली यह बोट रेस सबसे प्रसिद्ध है। हर साल अगस्त महीने के दूसरे शनिवार को होने वाली इस रेस का इस साल आयोजन 10 अगस्त को हुआ है। इस आयोजन में चुंदन वेलोम (स्नेक बोट) की पारंपरिक दौड़ के अलावा पानी पर झांकियां भी होती हैं। इस दौड़ को देखना अपने आप में दुर्लभ अनुभव है।
पय्यपड़ बोट रेस: अल्लपुझा में ही पय्यपड़ नदी में एक अन्य बोट रेस हुआ करती है। नेहरू ट्रॉफी बोट रेस के बाद स्नेक बोट की सबसे बड़ी रेस केरल में यही है। एक प्राचीन कथा के अनुसार इस रेस का आयोजन हरीपाद मंदिर में सुब्रह्मण्य स्वामी मंदिर में मूर्ति की स्थापना से जुड़ा है। वहां ग्रामीणों को सपने में निर्देश मिले जिसके बाद वे कायमकुलम झील में एक चक्रवात तक पहुंचे, जहां उन्हें मूर्ति प्राप्त हुई। इस साल यह रेस 18 सितंबर को आयोजित की जाएगी।
अर्णामुला वल्लमकली: यह बोट रेस अपनी लंबी परंपरा और भव्यता के लिए जानी जाती है। यह रेस कम और पारंपरिक रस्म ज्यादा है। इस साल इसका आयोजन 20 सितंबर को होगा। अर्णामुला में पंबा नदी में होने वाला यह आयोजन दरअसल ओणम समारोहों का ही हिस्सा है। इसके पीछे बताया जाता है कि एक बार एक ब्राह्मण ने अर्णामुला पार्थसारथी मंदिर में थिरुवोणम पर होने वाले पारंपरिक भोज के लिए अपनी सारी संपत्ति समर्पित करने की घोषणा की। इस भेंट के साथ लदी नाव (थिरुवोना थोनी) पर कुछ लोगों ने हमला बोल दिया। आसपास के गांववालों को इसका पता चला तो उन्होने बचाव में अपनी सर्प नौकाएं भेजीं। तभी से भागवान पार्थसारथी को सर्प नौकाओं की दौड़ के रूप में भेंट भेजने की रस्म की शुरुआत हो गई।
कुमारकोम बोट रेस: जिस दिन (इस साल 18 सितंबर) पय्यपड़ में बोट रेस होती है, उसी दिन प्रसिद्ध रिजॉर्ट कुमारकोम में भी श्री नारायण जयंती बोट रेस होती है। यह रेस केरल में होने वाली बाकी रेसों से अलग है। यह रेस महान समाज सुधारक श्री नारायण गुरु के इस गांव में आने की याद में आयोजित की जाती है। बताया जाता है कि नारायण गुरु 1903 में नाव में बैठकर अल्लपुझा से कुमारकोम आए थे। उनके साथ कई नावों में लोग थे। हर साल उनकी जयंती पर उस दिन की याद में यह बोट रेस होती है।