
साल की आखिरी शाम को विदा करने और नए साल की पहली सुबह का स्वागत करने का ख्याल कुछ अलग ही तरीके से रोमांचित करता है। लेकिन हममें से ज्यादातर अपने आसपास की होटलों या रेस्तराओं की न्यू ईयर पार्टियों या डिनर से आगे सोच ही नहीं पाते। आखिरकार जाते साल की आखिरी शाम हमारे लिए बीते वक्त को याद करने की और नए साल की पहली सुबह नई उम्मीदें जगाने की होती है। छोडि़ए होटलों की पार्टीबाजी और नाच-गाना और इस बार अपने हमसफर, दोस्तों या निकटजनों के साथ जाइए ऐसी जगह, जहां ढलते या उगते सूरज की लालिमा आपको भीतर तक आह्लादित कर देती है। सूरज के क्षितिज में समा जाने या वहां से बाहर निकलते देखना सबसे सुकूनदायक पलों में से एक होता है। हम आपको सुझा रहे हैं ऐसी ही कुछ जगहें। इनमें से कई जगहें ऐसी हैं जहां आप एक ही स्थान पर केवल अपनी नजरें घुमाकर शाम को सूर्यास्त और सवेरे सूर्योदय देख सकते हैं। इस फेहरिस्त में हालांकि आपको गोवा, केरल या पूर्वी तट के कई समुद्री तट नहीं मिलेंगे जो पहले से ही सैलानियों में बहुत लोकप्रिय हैं।
हिमालय की गोद में

टाइगर हिल का रोमांचः यूं तो हिमालय में किसी भी जगह पर बर्फीले पहाड़ों के पीछे से या घाटी में फैले बादलों में से उगते सूरज को देखना बेहद रोमांचकारी अनुभव होता है। लेकिन बहुत ही कम जगहों को इसके लिए उतनी ख्याति मिलती है जितनी दार्जीलिंग में टाइगर हिल को मिली है। टाइगर हिल दार्जीलिंग शहर से 11 किलोमीटर दूर है। दार्जीलिंग से यहां या तो जीप से पहुंचा जा सकता है या फिर चौरास्ता, आलूबारी होते हुए पैदल, लेकिन इसमें दो घंटे का समय लग सकता है। टाइगर हिल से सूर्योदय देखने की ख्याति इतनी ज्यादा है कि अल्लसुबह दार्जीलिंग से हर जीप सैलानियों को लेकर टाइगर हिल की ओर दौड़ लगाती नजर आती है ताकि वहां चोटी पर बने प्लेटफॉर्म पर सूर्योदय का नजारा देखने के लिए अच्छी जगह खड़े होने को मिल सके। हैरत की बात नहीं कि देर से पहुंचने वाले सैलानियों को यहां मायूस रह जाना पड़ता है। सूरज की पहली किरण जब सामने खड़ी कंचनजंघा चोटी पर पड़ती है तो सफेद बर्फ गुलाबी रंग ले लेती है। धीरे-धीरे यह नारंगी रंग में तब्दील हो जाती है। टाइगर हिल से मकालू पर्वत और उसकी ओट में थोड़ी छाया माउंट एवरेस्ट की भी दिखाई देती है। 1 जनवरी को बेशक थोड़ी सर्दी होगी, लेकिन टाइगर हिल से साल की पहली सुबह को प्रणाम करना एक बड़ा ही रोमांचक अनुभव होगा।
कैसेः टाइगर हिल के लिए पश्चिम बंगाल में दार्जीलिंग जाना होगा। दिल्ली या कोलकाता से ट्रेन से न्यू जलपाईगुड़ी पहुंचे या हवाई जहाज से बागडोगरा। वहां से दार्जीलिंग सड़क के रास्ते पहुंचने में चार घंटे लगते हैं। मौसम अच्छा हो तो सिलीगुड़ी से छोटी टॉय ट्रेन से भी दार्जीलिंग जाया जा सकता है। दार्जीलिंग में रुकने के हर इंतजाम हैं। टाइगर हिल जाने के लिए रात में ही होटल वाले को बता दें और टैक्सी का इंतजाम कर लें।

नंदा देवी का नजारा: बात सूरज के उगने या डूबने की हो तो उसकी किरणों से फैलते रंगों का जो खेल पानी में या बर्फीले पहाड़ पर देखने को मिलता है, वो कहीं और नहीं मिलता। इसीलिए सूर्योदय या सूर्यास्त देखने के सबसे लोकप्रिय स्थान या तो समुद्र (नदी व झील भी) के किनारे हैं या फिर ऊंचे पहाड़ों में। उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके में भी ऐसी कई जगहें हैं, चाहे वो अल्मोड़ा में कसार देवी या बिनसर हो या फिर नैनीताल जिले में सोनापानी- इन जगहों से आप नंदा देवी का खूबसूरत नजारा देख सकते हैं। सोनापानी गांव पहाड़ के ढलान पर है और सामने बुरांश के पेड़ों से लकदक दूर तक फैली घाटी है। घाटी के उस पार हिमालय की श्रृंखलाएं इस तरह ऊंची सामने खड़ी हैं, मानो यकायक कोई ऊंची दीवार सामने आ जाए। इन्हीं में भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी भी है। यहां आपको पर्वत के पीछे से उगता सूरज तो नजर नहीं आएगा, लेकिन खुले मौसम में सुबह की पहली किरण में नंदा देवी और बाकी चोटियों के बदलते रंगों में आप खो जाएंगे। कमोबेश ऐसी ही रंगत डूबते सूरज के समय भी रहेगी। दिसंबर-जनवरी में आप सामने के पहाड़ों की ठंडक महसूस कर सकेंगे, हो सकता है कि कभी बर्फबारी से भी दो-चार हो जाएं, लेकिन रूमानियत भरपूर रहेगी। सर्दी से डर न लगता हो और हनीमून व नया साल, दोनों साथ मनाना चाहें तो इससे बेहतर जगह कोई नहीं। बाकी दुनिया के हो-हल्ले से बहुत दूर- थोड़ा रोमांच और पूरा रोमांस। एक नई शुरुआत के लिए एकदम माफिक जगह है यह।
कैसेः सोनापानी जाने के लिए ट्रेन से काठगोदाम पहुंचकर या हवाई जहाज से पंतनगर पहुंचकर टैक्सी करनी होगी। वहां से सड़क का रास्ता लगभग चार घंटे का है। सोनापानी रिजॉर्ट में शानदार कॉटेज हैं, करने व घूमने को बहुत कुछ है और कुछ न करना चाहें तो भी यहां बोर नहीं होंगे। संगीत सुनाती मदमस्त पहाड़ी हवा है और गीत गाते पंछी। अल्मोड़ा व मुक्तेश्वर जैसे सैलानी स्थल भी निकट ही हैं।