
छोटा लेकिन बेहद रोमांचक। बांधवगढ़ में बाघों का अनुपात भारत में किसी भी और टाइगर रिजर्व की तुलना में सबसे ज्यादा है। जाहिर है, इसलिए यहां बाघ को देखने की संभावना भी लगभग तय रहती है। रणथंबौर की ही तरह बांधवगढ़ ने भी बाघप्रेमियों को कई शानदार बाघों का तोहफा दिया है, जैसे कि चार्जर, सीता व बी-2 जिन्होंने अपनी शख्सियत के चलते लोगों के दिलों पर राज किया। बांधवगढ़ को श्वेत बाघों का देश भी कहा जाता है। सालों तक रीवा रियासत के पुराने इलाकों में सफेद बाघ मिलते रहे। नेशनल पार्क बनाए जाने से पहले बांधवगढ़ के आसपास के जंगल रीवा के महाराजाओं के लिए शिकारगाह के तौर पर रखे जाते थे। भारत में बाघ देखने के लिए सबसे लोकप्रिय टाइगर रिजर्वों में से एक बांधवगढ़ है। शहडोल जिले में विंध्य पहाड़ियों के एक किनारे पर स्थिति बांधवगढ़ 448 किलोमीटर इलाके में फैला है। इन पहाड़ियों में सबसे शानदार बांधवगढ़ ही है जो समुद्र तल से 811 मीटर की ऊंचाई पर है। इसी पहाड़ी की चोटी पर बांधवगढ़ किला है। माना जाता है कि यह दो हजार से भी ज्यादा साल पुराना है। उसके चारों तरफ कई छोट-छोटी पहाड़ियां हैं। पार्क में कई जगहों पर और खास तौर पर किले के आसपास कई गुफाएं हैं जिनमें संस्कृत में कई शिलालेख लिखे हैं।
वन्यप्राणीः बांधवगढ़ में बाघ व तेंदुए समेत अन्य वन्य प्राणियों की बहुतायत है। गौर, सांभर, चीतल व नीलगाय तो पार्क में सब तरफ नजर आ जाते हैं। यहां जानवरों की कम से कम 22 और पक्षिय़ों की 250 प्रजातियां मिल जाती हैं। पानी के आसपास वाले इलाके में पक्षी आसानी से नजर आ जाते हैं। कोबरा, क्रैट, वाइपर व पायथन भी यहां के जंगलों में दिखाई दे जाते हैं।
कैसे पहुंचे
वायु मार्गः सबसे निकट का हवाई अड्डा जबलपुर (164 किलोमीटर) है। दिल्ली से खजुराहो आकर भी बांधवगढ़ जाया जा सकता है। साढ़े पांच घंटे (237 किलोमीटर) का यह रास्ता लंबा लेकिन बेहद खूबसूरत है।
ट्रेन सेः सबसे निकट के बड़े रेलवे स्टेशन जबलपुर (164 किलोमीटर), कटनी (102 किलोमीटर) व सतना (120 किलोमीटर) हैं। वैसे दक्षिण-पूर्वी रेलवे का उमिराया स्टेशन (35 किलोमीटर) सबसे पास पड़ता है।
सड़क सेः कटनी व उमरिया के बीच सरकारी व निजी बसें चलती हैं। सतना व रीवा से भी ताला (बांधवगढ़) के लिए बसें हैं। सतना, जबलपुर, कटनी, उमरिया, बिलासपुर (300 किलोमीटर) और खजुराहो से टैक्सियां भी मिल जाती हैं।