एशिया की सबसे लंबी पैदल राजजात यात्रा को आखिरकार रद्द ही कर दिया गया। दैवीय आपदा के बाद उपजे हालात को देखते हुए 29 अगस्त से शुरू होने वाली राजजात यात्रा अंततः स्थगित कर दी गई। कुछ ही दिनों के अंतराल में राजजात यात्रा का नया कार्यक्रम घोषित कर दिया जाएगा। फिलहाल यह तय किया गया है कि 26 अगस्त को उन सभी स्थानों पर विशेष पूजा की जाएगी, जहां से राजजात में छंतोलियां यानि देवी के छत्र शामिल होने के लिए आते हैं। उत्तराखंड में आई विनाशकारी प्राकृतिक आपदा, सरकार के अनुरोध और अपने परंपरागत अधिकारों व उत्तरदायित्वों का प्रयोग करते हुए नंदा देवी राजजात समिति ने यात्रा स्थगित की है। 12 साल में एक बार होने वाली राजजात यात्रा 2013 इसी महीने की 29 तारीख को चमोली जिले के नौटी गांव से शुरू होनी थी, लेकिन आपदा के कारण यात्रा मार्ग बर्बाद होने तथा अन्य समस्याओं की वजह से यात्रा को लेकर संशय बना हुआ था।...
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सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहा... इन पंक्तियों से यूं तो कई लोग घुमक्कड़ी की प्रेरणा हासिल करते हैं, लेकिन कुछ बिरले ही हैं जो वाकई दुनिया की सैर करने की हिम्मत जुटा पाते हैं। अब जनाब दुनिया की सैर करना इतना आसान भी तो नहीं। अराउंड द वर्ल्ड इन एट डॉलर्स, देखने में भले ही कितनी रोमांचक क्यों न लगे, वैसा हकीकत में कम ही हो पाता है। तुषार अग्रवाल और संजय मदान नाम के दो रोमांचप्रेमी युवाओं ने सड़क और समुद्र के रास्ते दुनिया की सैर करने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए वे छह महाद्वीपों में स्थित पचास देशों से गुजरेंगे और कुल सत्तर हजार किलोमीटर का सफर तय करेंगे। उन्होंने इसे ग्रेट इंडियन वल्र्ड ट्रिप नाम दिया है। तुषार व संजय के नाम पहले ही लिम्का बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉड्र्स में सात रिकॉर्ड दर्ज हैं। ये सातों रिकॉर्ड सड़कों पर अलग-अलग सफर के नाम हैं। इस वल्र्ड ट्रिप का मकसद भारत को उन देशों
Read Moreराजस्थान के पारंपरिक व सर्वाधिक लोकप्रिय नृत्य घूमर को विश्व के सर्वोत्कृष्ट 10 स्थानों में से चौथा स्थान मिला है। एक इंटरनेशनल ऑनलाइन ट्रैवल पोर्टल ने दुनिया के सभी नृत्यों को विभिन्न मानदंडों पर परखते हुए ‘‘घूमर‘‘ को चौथा स्थान दिया है। इस कड़ी में यह भारत का एकमात्र नृत्य है। पहले स्थान पर हवाई, दूसरे स्थान पर जापान का बोन ओडोरी और तीसरे स्थान पर आयरलैंड का नृत्य रहा है। ‘‘घूमर‘‘ राजस्थान की पारंपरिक नृत्यशैली है जिसमें विभिन्न मांगलिक व खुशी के अवसरों पर महिलाएं श्रृंगारिक नृत्य करती है। मुगलकालीन युग में औरतें पुरुषों से पर्दा करती थीं, लिहाजा यह नृत्य मुंह ढककर होता था। अब तब कमोबेश उसी तरह नृत्य करने की परंपरा चली आ रही है। राजमहलों, सामंतों, राजपूतों के घरों में विशेष रूप से किया जाने वाला यह नृत्य राजपूतों की महिलाओं की अन्य सूबों में शादियों के साथ अनेक स्थानों पर विभिन्न र...
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