इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़मे गाएगी वो सुब्ह कभी तो आएगी जिस सुब्ह की ख़ातिर जुग जुग से हम सब मर-मर के जीते हैं जिस सुब्ह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं इन भूखी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी वो सुब्ह कभी तो आएगी This song written by Sahir Ludhianvi more than 62 years ag...
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