
हेमकुटा पहाडि़यों पर बने इक्कीस शिव मंदिरों में से एक में मैंने बारिश से बचने के लिए अपने गाइड के साथ शरण ले रखी थी। पीछे विशाल चट्टानों से बहता पानी बहुत सुंदर लग रहा था। उसने छोटे-छोटे झरनों के आकार ले लिए थे। सामने विरुपाक्ष मंदिर के तीनों शिखर एक साथ दिखाई दे रहे थे। विरुपाक्ष मंदिर हंपी के उन गिने-चुने मंदिरों में से है जिनमें आज भी विधिवत पूजा होती है। विरुपाक्ष मंदिर के भीतर जितनी चहल-पहल थी, उसके उलट हेमकुटा पहाड़ी से आसपास बने शिव मंदिरों, जैन मंदिरों और पीछे विरुपाक्ष मंदिर का नजारा बारिश से बन गए कुहासे में बिलकुल किसी प्राचीन सभ्यता की झलक दे रहा था। ऐसा लग रहा था मानो आप म्यांमार के बागान मंदिरों को देख रहे हों।

हंपी बहुत फैला हुआ है। पुरातत्व विभाग के अनुसार 26 वर्ग किलोमीटर इलाके में। होसपेट से आते हुए रास्ते में कई जगह उस दौर के मंदिर मिल जाते हैं। विरुपाक्ष मंदिर व हेमकुटा पहाड़ी के मंदिरों की अहमियत दो अर्थों में सबसे ज्यादा है- एक तो वहां अब भी पूजा होती है। दूसरा, हंपी की मौजूदा आबादी इसी के इर्द-गिर्द है। गांव, बाजार, रेस्तरां, गेस्ट हाउस, पार्किंग, सभी कुछ यहीं है। हंपी आने वाले सैलानी सबसे पहले इसे ही घूमते हैं। वैसे शिल्प की दृष्टि से विट्ठल मंदिर परिसर सबसे समृद्ध है। इस मंदिर में कोणार्क के सूर्य मंदिर का प्रभाव जमकर दिखाई देता है। जाहिर है, उड़ीसा के राजा गजपति को हराने के बाद कृष्णदेव राय ने वहां के शिल्प का जमकर अनुसरण किया होगा। विट्ठल मंदिर में स्थित पत्थर का रथ हंपी के सबसे बड़ी पहचानों में से है। हंपी का तीसरा सबसे महत्वपूर्ण परिसर शाही अहाते और हजारराम मंदिर वाला है। शाही अहाता में तो पुष्करणी अभी तक अक्षुण्ण है। यह दरअसल सीढ़ीदार कुंड की तरह है। इसके अलावा खुला मंडप है जहां बैठकर राजपरिवार विभिन्न आयोजन देखता होगा। हजारराम मंदिर का नाम ही बताता है कि वहां हजार राम अंकित हैं। हंपी में कई अन्य मंदिर व इमारतें हैं और दूर-दूर फैली हैं। उन सभी को तसल्ली से देखने के लिए कम से कम तीन-चार दिन का समय तो अवश्य ही चाहिए।

हंपी जाकर एक मध्यकालीन नगर की संरचना का अहसास होता है। मंदिरों के भीतर धर्मशालाएं, रसोई, विवाह मंडप, सब कुछ थे। शाही अहाते में पानी की सप्लाई के लिए रोमन शैली के एक्वाडक्ट देखे जा सकते हैं। हर प्रमुख मंदिर परिसर के बाहर एक विशाल बाजार हुआ करता था। जैसे विट्ठल मंदिर के बाहर घोड़ों का बाजार था तो हजारराम मंदिर के बाजार पान-सुपारी का बाजार था। मंदिर के शिल्प में मध्यकालीन भारत के शिल्प की तमाम प्रवृत्तियां देखने को मिल जाती हैं। जैसे यहां के कई मंदिरों में मिथुन क्रिया व श्रृंगार की मूर्तियां मिल जाएंगी।

खास बातें




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