जब उत्तर भारत में मौसम सर्द हो तो समुद्र के किनारे जाकर रेत में पसरकर धूप सेंकने से ज्यादा सुकून भरा अहसास और क्या हो सकता है। भारत की यही खासियत है कि आप एक ही देश में कुछ घंटों के सफर में ही मौसम को दगा दे सकते हैं। भारत का समुद्र तट बहुत लंबा है- पश्चिम में गुजरात से लेकर केरल तक और पूरब में बंगाल से लेकर तमिलनाडु तक साढ़े सात हजार किलोमीटर से भी ज्यादा। फिर अंडमान व लक्षद्वीप सरीखे द्वीपों के भी कई समुद्र तट हैं। इन्हीं में से छांटकर एक नजर भारत के उन कुछ समुद्र तटों पर जहां इन फाल्गुन की छुट्टियों में आप अपने परिवार के साथ जाकर लहरों से मौज-मस्ती कर सकते हैं
केरल के दक्षिणी छोर पर एक छोटा-सा शहर है वर्कला। पहली नजर में यह हल्की-फुल्की रफ्तार से चल रही एक उनींदी-सी जगह लगती है। लेकिन पहाड़ी पर पहुंचकर जैसे ही आप नीचे नजर दौड़ाते हैं तो एक दूसरी ही दुनिया नजर आती है। अगर आप गोवा, मुबंई या चेन्नई जैसे चर्चित पर्यटन स्थलों पर मटमैले और गंदगी से भरे हुए समुद्र तट देखकर उकता चुके हैं तो वर्कला उन सबसे अलग है। यहां की रेत लगभग सफेद रंग की है और किनारे मखमली। इस साफ-सुथरे तट पर जब डूबते सूरज की लालिमा बिखरे देखो तो जन्नत जैसा अहसास होना लाजिमी है। अपनी खूबसूरती में यह तट थाईलैंड व मलेशिया के बीचों को टक्कर देता है। समुद्र किनारे बसा और विदेशियों का पसंदीदा यह पर्यटन स्थल असल में समुद्रतल से खासी ऊंचाई पर है। वर्कला के आसपास पश्चिमी घाट की चट्टानें समुद्र से थोड़ी दूरी पर न होकर बिल्कुल किनारे पर हैं। इन्हीं में से दो चट्टानों पर बसा है वर्कला। इनमें से एक है नॉर्थ क्लिफ और दूसरी साउथ क्लिफ; और तीखी ढलान वाली इन चट्टानों की तलहटी में हैं चमचमाती रेत वाले किनारे।
कहां रुकेः वर्कला में पांच सितारा रिजॉर्ट हैं तो कम मंहगे होटल भी हैं। लेकिन यहां की असली पहचान हैं होम स्टे। विदेशी सैलानी होटलों के कमरों में बंद रहने के बजाय स्थानीय रंग-ढंग में घुलना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे में होम स्टे की यहां भरमार है। स्थानीय लोगों के घरों में मेहमान बनकर रहना, केरल की संस्कृति को करीब से जानना और शुद्ध मलयाली भोजन… होम स्टे में रहने का अनुभव ही अलग है।
क्या करेः एक तरफ झूले, तो दूसरी तरफ चटाई पर बैठे और हंसी-ठिठोली करते युवा। पीने के लिए कुएं का पानी और मोमबत्ती की रोशनी में चारपाई पर सबके साथ बैठकर मलयाली भोजन खाना। होम स्टे में मलयाली खाने का जहां अपना ही आनंद है, वहीं क्लिफ पर मौजूद रेस्तराओं में डिनर के विकल्प भी खुले हैं। हल्की रोशनियों के बीच बजता संगीत, नीचे गरजना करता समुद्र, और ताजा समुद्री भोजन.. आप इस माहौल में किए गए डिनर को बार-बार याद करेंगे। यहां पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर आपको बिना पका सी-फूड भी बिकता मिलेगा। आप यहां अपनी पसंद का सी-फूड पकवाकर खा सकते हैं। खाने के शौकीनों के लिए वर्कला जन्नत है। इनके अलावा, सेहत के प्रति फिक्रमंद लोग भी यहां आकर अपना तनाव दूर सकते हैं। यहां पर आयुर्वेदिक मसाज व स्पा के अनेक सेंटर हैं जहां आप अपनी शारीरिक एवं मानसिक थकान को अलविदा कह सकते हैं।
आसपासः धर्म-कर्म के लिहाज से भी वर्कला का कम महत्व नहीं है। यहां आप जनार्दन मंदिर जा सकते हैं जो दो हजार साल पुराना है। यह मंदिर पापनाशम तट से कुछ ही दूरी पर है। मान्यता है कि यहां आकर सब पापों का नाश हो जाता है। वैष्णव मत के लोग इसे दक्षिण की काशी कहते हैं। इसके अलावा, वर्कला में शिवगिरी मठ भी है जिसे महान समाज सुधाकर एवं संत नारायण गुरु ने स्थापित किया था। यहां हर साल 30 दिसंबर से 1 जनवरी तक शिवगिरी महोत्सव मनाया जाता है।
कैसे जाएः तिरुवनंतपुरम से वर्कला की दूरी करीब 50 किलोमीटर है और वहां से वर्कला के लिए बसें व ट्रेनें हैं। ट्रेन का सफर अधिक सुविधाजनक है। स्टेशन का नाम वर्कला शिवगिरी है।
कोणार्क के विश्वप्रसिद्ध सूर्य मंदिर से महज तीन किलोमीटर दूर है चंद्रभागा का शांत व मनोरम समुद्र तट। इसकी गिनती भारत के सबसे खूबसूरत समुद्र तटों में होती है। हालांकि भीड़भाड़ व सैलानियों की रेलमपेल से दूर यह बहुत सुकून वाली जगह है। सफेद रेत, नीला समुद्र और बीच में दूर तक फैला तट। साफ आसमान में यहां सूर्योदय व सूर्यास्त दोनों ही बड़े खूबसूरत होते हैं। बताते हैं कि पहले चंद्रभागा नदी यहां आकर समुद्र में मिलती थी, इसी से इसका नाम चंद्रभागा पड़ा। हालांकि अब नदी का वो मुहाना सूखा पड़ा है। चंद्रभागा का पौराणिक संदर्भ भी मिलता है। हर साल माघ सप्तमी पर लगने वाले मेले पर यह जगह गुलजार हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा पर भी बड़ी संख्या में लोग यहां स्नान के लिए पहुंचते हैं। रात में अगर चांद निकला हो तो उसकी दूधिया रोशनी में इस तट पर टहलना बेहद रोमांटिक अनुभव है। हालांकि लहरें तेज होने के कारण यहां पानी में नहाना ठीक नहीं, लेकिन ऐसी मान्यता रही है कि यहां के पानी में चिकित्सकीय खूबियां हैं।
क्या करेः चंद्रभागा पर एक काम करता लाइटहाउस है, जहां से समुद्र का शानदार नजारा दिखता है। बच्चों के लिए यह खासा आकर्षक हो सकता है। इसके अलावा यहां कैमल राइड जैसे छोटे-मोटे आकर्षण बच्चों के लिए हैं। अभी यहां उस तरह की कमर्शियल गतिविधियां या वाटर स्पोर्ट्स वगैरह नहीं हैं। कोणार्क बगल में है। इसलिए सुबह-शाम बीच पर बिताना और दिन में कोणार्क के मंदिर देखना, यह यहां का सबसे प्रचलित रूटीन है। तट के किनारे भी मायादेवी मंदिर, नवग्रह मंदिर और रामचंडी मंदिर हैं।
कहां रुकेः यूनेस्को विश्व विरासत होने के कारण कोणार्क में ओडिशा पर्यटन का पंथनिवास और कुछ अन्य बड़े रिजॉर्ट व कई छोटे होटल भी हैं। चंद्रभागा बीच देखने के लिए यहीं रुकना ठीक रहेगा।
कैसे पहुंचेः चंद्रभागा का बीच पुरी से कोणार्क के रास्ते में है। दरअसल यहीं से उस तटीय रास्ते की शुरुआत होती है जिसे पुरी-कोणार्क मैरिन ड्राइव कहा जाता है। पुरी यहां से 30 किलोमीटर दूर है। वहीं सबसे निकट का रेलवे स्टेशव व बस अड्डा है। सबसे निकट का हवाई अड्डा भुवनेश्वर में है जो यहां से लगभग 75 किलोमीटर दूर है।
कब जाएः मानसून के महीने छोड़कर यहां साल में कभी भी जाया जा सकता है।
अंडमान में हैवलॉक का राधानगर
अंडमान व निकोबार के हैवलॉक द्वीप का बीच नंबर 7 ही राधानगर बीच भी कहलाता है। कुछ ट्रैवल विश्लेषकों ने इसे एशिया के सबसे लोकप्रिय बीचों की श्रेणी में भी रखा है। इससे इसकी खासियत का पता लग जाता है। सफेद रेत, शांत पानी और आसपास की खूबसूरती इसे आराम करने के लिए शानदार जगह बना देती है। सामने सूरज और पीछे जंगल। बीच के आसपास पक्षी और वनस्पतियां इस जगह को प्रकृति प्रेमियों के लिए भी खासी रोचक बना देती हैं। इसका नाम राधानगर पास के गांव की वजह से है। हैवलॉक पर पांच गांव हैं- गोविंद नगर, बिजॉय नगर, श्याम नगर, कृष्णा नगर और राधा नगर। हैवलॉक के उत्तर पश्चिमी तट पर एलीफेंट बीच है तो पूर्वी तट पर विजयनगर बीच और बीच नंबर 3 व 1. हैवलॉक के कई बीचों पर समुद्र के किनारे सैर करने के लिए हाथी की सवारी की जा सकती है। यहां से सूर्यास्त का नजारा बेहद अदभुत है।
क्या करेः शांत, साफ नीले पानी में नहाने का अलग ही मजा है। कई जगहों पर कोरल रीफ हैं और वहां स्नोर्कलिंग का आनंद लिया जा सकता है। बीच से थोड़ा आगे जाकर एक ब्लू लैगून भी है।
कहां रुकेः अंडमान जाने वाले सैलानियों में हैवलॉक द्वीप सबसे लोकप्रिय है, इसलिए अंडमान के कई सबसे शानदार रिजॉर्ट इस द्वीप पर हैं। या फिर आप पोर्ट ब्लेयर में रुककर भी राधानगर घूमने के लिए आ सकते हैं।
कैसे पहुंचेः पोर्ट ब्लेयर से हैवलॉक पहुंचने में फेरी से 2-4 घंटे का वक्त लगता है। रंगत व नील द्वीपों से भी फेरी यहां रोजाना आती हैं। पोर्ट ब्लेयर से हैवलॉक के लिए पहले पवनहंस के हेलीकॉप्टर भी उड़ा करते थे। अब पोर्ट ब्लेयर से एक घंटे में सेसना सी-प्लेन से भी हैवलॉक द्वीप पहुंचा जा सकता है। भारत में सी-प्लेन का आनंद केवल अंडमान में ही लिया जा सकता है। हैवलॉक पहुंचकर राधानगर जाने के लिए बस या टैक्सी ले सकते हैं। बीच पर घूमने के लिए बाइक, स्कूटर व साइकिल भी किराये पर मिल जाती हैं।
कब जाएः यहां का मौसम आम तौर पर गर्म होता है और लगभग पूरे सालभर एक जैसा रहता है। मानसून के मौसम में यहां जमकर बारिश होती है, इसलिए तब न जाएं। नवंबर से मार्च का समय यहां जाने के लिए सर्वोत्तम है।
गोवा का पलोलेम
दक्षिण गोवा में कोकोनट पाम के पेड़ों से घिरा, एक मील लंबा अंर्धचंद्राकर पलोलेम बीच गोवा के सबसे सुंदर समुद्र तटों में से एक माना जाता है। राजधानी पणजी से यह लगभग 75 किलोमीटर दूर है। यह रोमांच प्रेमियों और सुकून पसंद लोगों में बराबर लोकप्रिय है। यही वजह है कि इस समुद्र तट पर दोनों तरह के माहौल एक-साथ देखने को मिल जाते हैं। बीच का उत्तरी हिस्सा शांत है जहां आम तौर पर परिवार के साथ लोग समय बिताना पसंद करते हैं। लंबे समय तक रुकने वाले भी यहीं आते हैं। उत्तर वाले हिस्से में समुद्र भी शांत है और बच्चों के साथ नहाने के लिए सुरक्षित है। बीच का दक्षिणी सिरा मौज-मस्ती करने वालों को ज्यादा पसंद आता है।
क्या करेः हरकत करने का मन करे तो डॉल्फिन ट्रिप पर निकला जा सकता है। ज्वार का समय हो तो नाव लेकर नहरों में बैकवाटर्स की सैर पर निकला जा सकता है और यह ज्यादा महंगी भी नहीं। पानी उतरा हो तो बटरफ्लाई बीच पर पैदल जाया जा सकता है जो वैसे द्वीप बना रहता है। बच्चों को पास ही कोटियागा वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी देखने में भी मजा आएगा, जिसे पलोलेम से दिनभर में घूमा जा सकता है।
कहां रुकेः पलोलेम अपने बीच कॉटेजेज (कोको हट्स) के लिए बहुत प्रसिद्ध है। लोकप्रिय स्पॉट होने की वजह से यहां रुकने के लिए कई शानदार होटल व रिजॉर्ट भी हर बजट के मुताबिक हैं।
कैसे पहुंचेः सबसे निकट का हवाई अड्डा डाबोलिम है। वहां से पलोलेम तक का रास्ता डेढ़ घंटे का है। पणजी से यहां आने में लगभग दो घंटे लग जाते हैं। वैसे सबसे निकट का बड़ा रेलवे स्टेशन कोंकण रेलवे की लाइन पर मडगाव (43 किलोमीटर) है। कैनाकोना रेलवे स्टेशन भी यहां से नजदीक केवल दस मिनट के रास्ते पर है।
कब जाएः बागा की ही तरह यहां भी टूरिस्ट सीजन अक्टूबर से लेकर मार्च तक होता है। क्रिसमस व नए साल की छुट्टियों में यह पीक पर होता है। जनवरी-फरवरी में तट के किनारे रातें ठंडी हो सकती हैं, वरना लगभग पूरे साल भर यहां का मौसम लगभग एक जैसा ही होता है।
बंगाल का मंदरमणि
इस तट को पहले मंदरबोनि कहा जाता था जो बाद में जाकर धीरे-धीरे मंदरमणि हो गया। पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले में बंगाल की खाड़ी के ठीक शुरुआत में स्थित यह समुद्र तट बड़ी तेजी से एक बीच रिजॉर्ट के तौर पर विकसित हो रहा है। यह बीच बहुत लंबा है। कुल 13 किलोमीटर लंबा यह समुद्र तट अपने लाल केकड़ों के लिए बहुत जाना जाता है। इसे ड्राइविंग के लायक भारत के सबसे लंबे द्वीप के रूप में माना जाता है। इस द्वीप की सबसे बड़ी खूबी यही है कि टूरिस्ट नक्शे पर इतना उभरा न होने की वजह से अभी यहां लोगों का शोर-शराबा और सैलानियों की मारा-मारी उतनी नहीं है। यहां सुकून के साथ कुछ वक्त गुजारा जा सकता है।
क्या करेः पास ही में दीघा का भी बीच है। दीघा के लिए सैलानी पहले से जाते रहे हैं। दीघा की तुलना में मंदरमणि में लहरें कम ऊंची रहती हैं। पास ही में शंकरपुर भी लंबे समय से काफी लोकप्रिय सैलानी स्थल रहा है। यह भी एक वर्जिन बीच है। बीच पर बच्चों के लिए खेल के कई विकल्प हैं। नावों पर समुद्र में क्रूज के लिए निकलने का विकल्प तो है ही।
कहां रुकेः मंदरमणि में रुकने के लिए कई तरह के बजट होटल हैं। आसपास कई अच्छे बीच रिजॉर्ट भी हैं। दीघा व शंकरपुर में रुककर भी मंदरमणि को घूमा जा सकता है।
कैसे पहुंचेः यह समुद्र तट कोलकाता से दीघा के रास्ते पर कोलकाता से लगभग 180 किलोमीटर के रास्ते पर है। कोलकाता ही सबसे निकट का हवाई अड्डा है। कोलकाता से दीघा जाने वाली कई बसें चौवलखाला ले जाती हैं। वहां से मंदरमणि 14 किलोमीटर है। सबसे पास का रेलवे स्टेशन कोंटई में है जो मंदरमणि से 26 किलोमीटर है।
कब जाएः बाकी समुद्र तटों की ही तरह यह इलाका भी गर्म व उमस भरा होता है। लिहाजा मानसून में तो यहां जाना ठीक नहीं। नवंबर से मार्च तक का समय यहां जाने के लिए सबसे बेहतरीन है।
साफ-सुथरा तट, सफेद मखमली रेत है और पारदर्शी पानी… और लोगों का हुजूम? वो बिल्कुल नहीं। बहुत कम लोग हैं जो महाराष्ट्र के कोंकण इलाके के इस बीच से वाक़िफ़ होंगे। गंदगी और भीड़ से यह आज भी अछूता है। कुडाल महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग ज़िले में है, जो कोंकण रेलवे पर है। यहां से तारकरली क़रीब 45 किलोमीटर दूर है। तारकरली के लिए रास्ता मालवण से होकर गुज़रता है। मालवण छोटा लेकिन ख़ूबसूरत क़स्बा है। मालवण से तारकरली जाने वाला रास्ता बेहद ख़ूबसूरत है। लगता है गोवा के किसी इलाक़े में घूम रहे हों। यहां पानी बिल्कुल साफ होता है। इतना पारदर्शी कि आप समुद्र के कई फुट नीचे तक देख सकते हैं। कुछ लोग इसीलिए इसे देश के सबसे ख़ूबसूरत तटों में से एक मानते हैं।
क्या करेः बच्चे स्नॉर्क्लिंग, स्कूबा डाइविंग और स्विमिंग का आनंद ले सकते हैं। पास में सिंधुदुर्ग किले की भी सैर हो सकती है और डॉल्फिन प्वायंट की भी। यहां आएं तो आम व काजू ज़रूर खरीदें। आपने अलफांसो आम का नाम सुना है न? इसका घर मालवण में ही है। आप मालवण जाकर हापुस आम मांग लीजिए.. यही अलफांसो है। रस से भरा और शाही मिठास वाला आम!! मालवण से 14 किलोमीटर दूर देवबाग है। करली नदी के मुहाने पर बसा छोटा-सा गांव जहां क़ुदरत ज़्यादा मेहरबान लगती है। चारों तरफ सिर्फ़ हरियाली है। देवबाग में बोटिंग के बिना तारकरली का मजा अधूरा है।
कहां रुकेः तारकरली बीच पर किसी रिज़ॉर्ट में ठहरें ताकि अपने प्रवास का पूरा लुत्फ़ ले सकें। महाराष्ट्र में दो हाउसबोट हैं जो तारकरली में ही हैं। हाउसबोट में ठहरने के लिए महाराष्ट्र टूरिज़्म से संपर्क कर सकते हैं। इंटरनेट पर बुकिंग करा लें तो बेहतर है।
कैसे पहुंचेः तारकरली जाने के लिए सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन कुडाल है जो कोंकण रेलवे का अहम स्टेशन है। स्टेशन से तारकरली जाने के लिए बसें तो हैं ही, ऑटो भी मिलते हैं। मालवण के लिए हर आधे घंटे में बस है। मालवण पहुंचकर तारकरली के लिए ऑटो करें तो सस्ता पड़ेगा। तारकरली यहां से सिर्फ़ 7 किलोमीटर दूर है। वैसे, तारकरली जाने के लिए कंकवली या सिंधुदुर्ग रेलवे-स्टेशन भी नज़दीक हैं, लेकिन कम ही ट्रेनें यहां रुकती हैं। इसलिए कुडाल बेहतर विकल्प है। कुडाल स्टेशन पर ऑटो-रिक्शा बहुतायत में हैं जो 350 से 400 रुपए में आपको तारकरली ले जाएंगे। हवाई-मार्ग से जाना हो तो गोवा का डेबोलिम एयरपोर्ट सबसे नज़दीक है।
कब जाएः कोंकण के हरे-भरे इलाके में होने के कारण यहां मौसम अक्सर खुशनुमा होता है। मानसून को छोड़कर यहां कभी भी जाया जा सकता है।
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कुछ खास बातें
बीच पर नहानाः जिन समुद्र-तटों पर लाइफ-गार्ड की व्यवस्था नहीं हो वहां पानी के खेलों के दौरान सावधानी बरतें। समुद्र तट पर किनारे पानी में जाना तो ठीक है लेकिन तैरना न आता हो तो बिना किसी सहायता के आगे गहरे पानी में जाना ठीक नहीं। लहरें ऊंची हों तो खास तौर पर ध्यान रखें। ज्यादातर हादसे तब होते हैं जब ऊंची लहर किनारे से पानी में वापस लौटती है। लौटती लहर के साथ पांव के नीचे की रेत खिसकती है और वह अक्सर संतुलन बिगाड़ सकती है। पानी में जाते समय ज्वार-भाटे का भी हमेशा ध्यान रखें। शाम ढलते-ढलते समुद्र का पानी चढ़ने लगता है, इसलिए उस समय पानी में न जाएं। बच्चों व उम्रदराज लोगों को पानी में अकेले न जाने दें। ज्यादातर टूरिस्ट बीचों पर तैरना न जानने वालों के लिए ट्यूब, लाइफ जैकेट आदि भी मिल जाते हैं।
अन्य गतिविधियाः बीच पर सैलानियों के लिए जेट स्कीइंग, पैरासेलिंग, आदि कई आकर्षण रहते हैं। ज्यादा लोकप्रिय बीचों पर ऐसे खेल कराने वालों की संख्या भी बढ़ जाती है। इसलिए जब भी खुद या बच्चों को ऐसा कोई खेल कराएं तो ऑपरेटर के उपकरण, सुरक्षा उपायों आदि की पूरी जांच-परख कर लें। सुरक्षा से किसी तरह का समझौता न करें। यही ख्याल किसी क्रूज पर समुद्र में जाते हुए भी रखें।