
हवा में ठंडक कम हुई है। लेकिन सर्दी अभी गई नहीं है। हजारों किलोमीटर दूर सुदूर उत्तर के यहां से भी ज्यादा ठंडे इलाकों से प्रवासी पक्षी भारत में कई जगहों पर अभी बसेरा बनाए हैं। ऐसा वे हर साल करते हैं। बड़ी लंबी व दुष्कर उड़ान के बाद उनका अपने तय ठिकानों पर हर साल आना, वाकई कुदरत का बड़ा हैरतअंगेज करिश्मा है। अब जरा कल्पना कीजिए कि साइबेरिया (रूस, चीन व उत्तर कोरियाई इलाकों) के अमूर फॉल्कन हर साल 22 हजार किलोमीटर दूर अफ्रीका में प्रवास के लिए जाते हैं और इस दौरान वे बीच में भारत के उत्तर-पूर्व में नगालैंड में थोड़ा आराम करते हैं। यहां से अफ्रीका जाने के लिए यह पक्षी समुद्र के ऊपर चार हजार किलोमीटर की उड़ान बिना रुके भरता है। ऐसे ही कई पक्षी भारत में प्रवास के लिए आते हैं। दुनियाभर के पक्षी प्रेमी इस मौसम में भारत आते हैं, परिंदों की इस खूबसूरत दुनिया का नजारा लेने के लिए। बर्ड वाचिंग के शौकीनों के लिए भारत में कई जगहें हैं जहां वे दुर्लभ प्रवासी पक्षियों का नजारा ले सकते हैं। उनके घर लौटने में बस कुछ ही दिन बचे हैं। लिहाजा एक झलक उनमें से कुछ खास जगहों कीः
भरतपुर का घना
आगरा-जयपुर राजमार्ग पर आगरा से महज 55 किलोमीटर दूर राजस्थान में भरतपुर का केवलादेव घना पक्षी अभयारण्य है। कई लोग इस दुनिया का सबसे खूबसूरत, शानदार व संपन्न पक्षी विहार मानते हैं। दुनियाभर के पक्षी प्रेमियों व पक्षी विज्ञानियों के लिए यह किसी मक्का से कम नहीं है। वैसे तो यह पक्षी अभयारण्य है लेकिन आपको यहां कई और किस्म के वन्यप्राणी भी मिल जाएंगे। कई बार तो साथ ही लगे रणथंबौर से बाघ भी भटकते हुए यहां पहुंच जाते हैं। वैसे यहां अन्य कई जानवरों के अलावा पक्षियों की 366 प्रजातियां, फूलों की 379 किस्में, 50 तरह की मछलियां, सांप की 13 प्रजातियां, छिपकलियों की 5 प्रजातियां और कछुए की 7 प्रजातियां रिकॉर्ड की गई हैं। यहां की वनस्पतीय विविधता ही शायद अलग-अलग तरह के जीवन के लिए अनुकूल भी है। इन्हीं विशेषताओं के चलते इसे प्राकृतिक स्थानों की यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में भी शामिल किया गया है।
ढाई सौ साल पहले बने इस अभयारण्य का केवलादेव नाम पार्क में मौजूद शिव के प्राचीन मंदिर पर रखा गया है। 19वीं सदी के अंतिम दशक में भरतपुर के महाराजा ने खुद इस क्षेत्र का विकास किया। पहले यहां जंगल व बंजर भूमि थी। गड्ढों में बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता था तो वहां पक्षी डेरा डालने लगते थे। तब राजघराने के लोगों ने पास में बहने वाली गंभीर नदी के पानी को नहरों के जरिये इस इलाके में पहुंचाया जिससे यहां नम इलाका और कम गहरी झीलें बन गईं। धीरे-धीरे यही परिंदों की सैरगाह बनने लगी। राजघराने के लोग और अंग्रेज पहले यहां शिकार किया करते थे। 1956 में इसे अभयारण्य और फिर 1981 में इसे नेशनल पार्क बना दिया गया। पक्षियों की इस सैरगाह में देशी-विदेशी साढ़े तीन सौ से भी ज्यादा प्रजातियों के पक्षी शरण लेते हैं। इनमें एक-तिहाई संख्या प्रवासी पक्षियों की है। इन प्रवासी मेहमानों में से ज्यादातर छह हजार किलोमीटर का सफर तय करके साइबेरिया व मध्य एशिया के बाकी देशों से सर्दियों की शुरुआत में आते हैं और अप्रैल में फिर से अपने इलाकों को लौट जाते हैं। हालांकि देशी प्रवासी पक्षी यहां बारिशों के बाद से ही आना शुरू हो जाते हैं। कई प्रकार के सारस, पेंटेंड स्टॉर्क, ग्रे हैरॉन, ओपन बिल, स्पून बिल, व्हाइट इबिस, सरपेंट ईगल आदि यहां देखे जा सकते हैं।
कब, कहां व कैसेः राजस्थान के भरतपुर में स्थित केवलादेव घना नेशनल पार्क दिल्ली से लगभग पौने दो सौ किलोमीटर दूर है। नवंबर से मार्च तक का समय प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए बेहतरीन है। भरतपुर शहर से पार्क महज एक किलोमीटर दूर है। भरतपुर शहर दिल्ली, जयपुर व आगरा से रेल व सड़क से अच्छी तरह से जुड़ा है। पार्क के बाहर के इलाके में कई होटल हैं। पार्क के भीतर भी फॉरेस्ट लॉज और कुछ अच्छे रिजॉर्ट हैं।
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सुल्तानपुर में रौनक
दिल्ली में धौला कुआं से बमुश्किल 40 किलोमीटर दूर सुल्तानपुर बर्ड सैंक्चुअरी दिल्ली-एनसीआर के लिए सर्दियों के महीने के सबसे पसंदीदा वीकेंड डेस्टिनेशन में से एक है। इसे भारत के प्रमुख पक्षी अभयारण्यों में से एक माना जाता है। गुड़गांव से फर्रूखनगर के रास्ते पर स्थित इस बर्ड सैंक्चुअरी में पक्षियों की 250 से ज्यादा प्रजातियां देखने को मिल जाती हैं। साइबेरिया, चीन, यूरोप, तिब्बत व अफगानिस्तान से प्रवासी पक्षियों की सौ से ज्यादा प्रजातियां यहां सर्दियां गुजारने आती हैं। इनमें ग्रेटर फ्लेमिंगो, नॉदर्न पिनटेल, रोजी पेलिकन, वुड सैंडपाइपर, रफ, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, कॉमन टील, कॉमन ग्रीनशैक, यलो वैगटेल, व्हाइट वैगटेल, नॉर्दन शोवलर, गैडवल, स्पॉटेड सैंडपाइपर, स्पॉटेड रेडशैंक, स्टार्लिंग, यूरेशियन वाइगेन, ब्लूथ्रोट आदि शामिल हैं। चूंकि यहां देशी पक्षियों की संख्या भी खूब है, इसलिए यहां लगभग पूरे सालभर अच्छी संख्या में पक्षी देखने को मिल जाते हैं। यहां के निवासी पक्षियों में कॉमन हूप्पु, पैडीफील्ड पाइपिट, पर्पल सनबर्ड, लिटिल कॉर्मोरेंट, यूरेशियन थिक-नी, ग्रे फ्रैंकोलिन, ब्लैक फ्रैंकोलिन, इंडियन रोलर, कई तरह के किंगफिशर, आइबिस, इग्रेट्स, डव, बुलबुल, मैना, कबूतर, पैराकीट व स्टोर्क्स आदि शामिल हैं। लगभग 44.5 हेक्टेयर इलाके में फैले इस अभयारण्य को 1972 में सैलानियों के लिए खोला गया था। इस बर्ड सैंक्चुअरी को पैदल घूमने में लगभग दो घंटे का समय लग जाता है। पक्षियों को देखने के लिए यहां चार मचान भी बने हुए हैं। यहां नील गाय व ब्लैक बक भी देखने को मिल जाते हैं। प्रवासी पक्षियों के बसेरे सुल्तानपुर लेक से आगे भी फैले हैं। दिल्ली के कुछ इलाकों में प्रवासी पक्षियों की संख्या में आई गिरावट के बावजूद सुल्तानपुर में उनकी संख्या और प्राकृतिक माहौल कायम है।
कहां, कब व कैसेः सुल्तानपुर लेक हरियाणा के गुड़गांव जिले में है। गुड़गांव से फर्रूखनगर जाने वाले रास्ते पर चलें तो लगभग पंद्रह किलोमीटर बाद सुल्तानपुर पहुंचा जा सकता है। पर्यटन विभाग ने सैलानियों की सुविधा के लिए बुनियादी इंतजाम भी यहां किए हुए हैं। हरियाणा पर्यटन ने यहां गेस्ट हाउस बना रखा है और बर्ड म्यूजियम व वॉच टावर भी मौजूद हैं। दूर बैठे परिंदों को देखने के लिए दूरबीन भी किराये पर मिल जाती हैं। सर्दियों का समय प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए बेहतरीन लेकिन सुल्तानपुर उन पक्षी अभयारण्यों में से है जहां देसी निवासी पक्षी भी खूब हैं, इसलिए उन्हें देखने के लिए गर्मियों में भी जाया जा सकता है।
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कन्नौज का लाख-बहोसी
उत्तर प्रदेश में छोटे-मोटे कई पक्षी विहार हैं। हालांकि भरतपुर या चिलिका जैसी प्रसिद्धि किसी को नहीं मिली लेकिन इसी वजह से वहां सैलानियों की भीड़ कम है, शोर-शराबा कम है और प्रवासी पक्षियों के विहार के लिए यह बिलकुल मुफीद है। इन्हें में से एक है लाख-बहोसी पक्षी विहार। कन्नौज से 40 किलोमीटर दूर स्थित दो तालाबों लाख व बहोसी को मिलाकर यह पक्षी विहार 1988 में स्थापित किया गया था। उत्तर प्रदेश के जिस इलाके में यह स्थित है, वह पर्यटन की दृष्टि से बेहद कम विकसित है इसलिए इनके बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती। जाहिर है, यहां बाकी सैलानी स्थलों की तरह रुकने, ठहरने व खाने की अच्छी सुविधाएं नहीं मिलेंगी। लेकिन प्रवासी पक्षी देखने का शौक हो तो फिर भला क्या बात है। और फिर, सैलानियों की भीड़-भाड़ का अभाव ही यहां की अल्हड़ खूबसूरती के बने रहने की वजह भी है। यहां कई तरह के स्टोर्क, किंगफिशर, क्रेन, गूज, आइबिस व डक के अलावा पक्षियों की अन्य कई दुर्लभ प्रजातियां देखने को मिल जाती हैं। जंगली मुर्गियों, उल्लुओं, बुलबुल व मैना आदि की भी कई किस्में यहां मिल जाती हैं। इनमें बार-हेडेड गूज, पिन टेल, कॉमन टेल, सैंड पाइपर वगैरह शामिल हैं। पक्षियों से संबंधित जानकारियों के लिए यहां एक पक्षी विज्ञान केंद्र भी है।
कब, कहां व कैसेः कन्नौज कानपुर-मथुरा मुख्य रेल मार्ग पर और दिल्ली-कोलकाता नेशनल हाईवे 24 (जीटी रोड) पर स्थित है। बहोसी तालाब का रास्ता सुगम है। आम तौर पर सैलानी वहीं जाते हैं। लाख के लिए बहोसी होकर जाना पड़ता है और वहां का रास्ता थोड़ा दुष्कर है। बहोसी कन्नौज से 40 किलोमीटर दूर है। ओरैया जिले में दिबियापुर से बहोसी तालाब की दूरी 38 किलोमीटर दूर है। कन्नौज के अलावा फफूंद (38 किलोमीटर) सबसे पास के रेलवे स्टेशन हैं। कन्नौज की तरफ से आने के लिए तिर्वा, इंदरगढ़ होते हुए बहोसी पहुंचा जा सकता है। दिबियापुर से आने पर कन्नौज की तरफ जाते हुए बेला से आगे कल्याणपुर के रास्ते में बहोसी पहुंचा जा सकता है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार अब अपने ऐसे विहारों में सुविधाएं बढ़ाने पर ध्यान दे रही है, लेकिन अब भी लाख-बहोसी में कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। खाने-पीने को भी अच्छा ठिकाना नहीं। इसलिए फिलहाल अपनी तरफ से सारे इंतजाम करके ही जाएं तो बेहतर।
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गुजरात का नल सरोवर
गुजरात के अहमदाबाद व सुंदरनगर जिलों से सटा नल सरोवर अभयारण्य अहमदाबाद से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर है। नल सरोवर भारत में ताजे पानी के बाकी नम भूमि इलाकों से कई मायनों में अलग है। उपयुक्त मौसम, भोजन की पर्याप्तता और सुरक्षा ही सैलानी पक्षियों को यहां आकर्षित करती है। सर्दियों में सैंकड़ों प्रजातियों के लाखों प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा यहां रहता है। इतनी बड़ी तादाद में पक्षियों के डेरा जमाने के बाद नल में उनकी चहचाहट से रौनक बढ़ जाती है। नल में इन्हीं उड़ते सैलानियों की जलक्रीड़ाएं व स्वर लहरियों को देखने-सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहां प्रतिदिन जुटते हैं। यहां पक्षी विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, शोधार्थी व छात्रों का भी जमावड़ा लगा रहता है तो कभी-कभार यहां पर लंबे समय से भटकते ऐसे पक्षी प्रेमी भी आते हैं जो किसी खास परिंदे का फोटो उतारने की तलाश में रहते हैं। नल सरोवर अपने दुर्लभ जीवन चक्र के लिए जाना जाता है जिस कारण यह एक अनूठी जैवविविधता को बचाए हुए है। नल का वातावरण कई तरह के जीव-जंतुओं के लिए उपयुक्त है और एक भोजन श्रृंखला बनाता है। मूल रूप से यह बारिश के पानी पर निर्भर नम क्षेत्र है। सीजन की शुरुआत में यहां छोटे पक्षी ही आते हैं लेकिन जब नवंबर में मछलियां बड़ी हो जाती हैं तो भोजन की प्रचुरता व उचित वातावरण पाकर प्रवासी जल पक्षी भी यहां आने लगते हैं। दिसंबर से फरवरी तक इनकी संख्या अधिकतम होती है। नल एक खास प्रकार की जैवविविधता को बचाए हुए है। इस सरोवर में पिछली पक्षी गणनाएं बताती हैं कि नल में पक्षियों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है। 2002 में यह संख्या 1.33 लाख थी, तो 2004 में यह 1.84 लाख रही, 2006 में यह बढ़कर 2.52 लाख हो गई। तब बत्तख व हंसों की संख्या 1.19 लाख व क्रेक्स, रेहस व कूट की संख्या 82 हजार थी। इस सरोवर में प्रसिद्ध फ्लेमिंगो की संख्या 5820 आंकी गई। सरोवर क्षेत्र में छोटे-बड़े कुल 300 टापू हैं। भूगर्भवेताओं का मानना है कि जहां पर आज नल सरोवर है वह कभी समुद्र का हिस्सा था जो खंभात की खाड़ी को कच्छ की खाड़ी से जोड़ता था। भूगर्भीय परिवर्तनों से जब समुद्र पीछे चला गया तो यह बंद मौसमी झील में तब्दील हो गया। सरोवर क्षेत्र में 225 किस्म के मेहमान पक्षी देखे गए हैं जिनमें से सौ किस्म के प्रवासी जल पक्षी हैं। इन पक्षियों में हंस, सुर्खाब, रंग-बिरंगी बतखें, सारस, स्पूनबिल, राजहंस, किंगफिशर, प्रमुख हैं। कई बार यहां पर कुछ दुर्लभ पक्षी भी देखे गए हैं।
कब, कहां व कैसेः नल सरोवर के लिए आपको अहमदाबाद जाना होगा जो देश के प्रमुख नगरों से अच्छी हवाई व रेल सेवा से जुड़ा है। वहां से बस या टैक्सी से नल सरोवर पहुंचा जा सकता है। साठ किमी की दूरी को तय करने में डेढ़ घंटे लग ही जाते हैं। अभयारण्य की सीमा में गुजरात पर्यटन विकास निगम का एक गेस्ट हाउस है जो यहां पर एक रेस्तरां भी है। शोर न हो इसलिए सरोवर में मोटरबोट पूर्णतया प्रतिबंधित है। सरोवर की सैर के लिए बांस के चप्पुओं से खेने वाली नावें उपलब्ध रहती है। ये नावें अलग-अलग क्षमता वाली होती है। जैसे ही आप सरोवर में आगे बढ़ते है दूर-दूर मेहमान पक्षी नजर आने लगते हैं। पानी के अन्दर झांकने पर तलहटी में मौजूद जलीय जीवन भी आप देख सकते हैं। सरोवर में आपको निकटतम टापू तक ले जाया जाता है जिसतक आने जाने में दो से तीन घंटे तक लग जाते हैं। इस सैर के लिए वहां गाइड भी मिल जाते हैं। सरोवर के किनारे घुड़सवारी का आनंद भी ले लिया जा सकता है। यदि आप नल सरोवर के अलावा आसपास कुछ और देखना चाहते हों तो 60 किमी दूर लोथल जा सकते है जहां सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष देखे जा सकते हैं।
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चिलिका में विदेशी मेहमान
ओडिशा की चिलिका झील देश में प्रवासी पक्षियों का सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां हर साल पहुंचने वाले पक्षियों की संख्या कई लाखों में है। कुल 1100 किलोमीटर की परिधि वाली यह झील उड़ीसा के तीन जिलों खुरदा, पुरी और गंजम में फैली है। यह एशिया में ब्रेकिश पानी (मीठे व खारे पानी की मिश्रित) की सबसे बड़ी झील है। दया नदी यहीं बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसे चिलिका लैगून भी कहा जाता है। यह देश के सबसे खूबसूरत प्राकृतिक इकोसिस्टम्स में से एक है। देश में इरावडी डॉल्फिन देखने का भी यही अकेला ठिकाना है। इस झील में पहुंचने वाले शुरुआती प्रवासी पक्षी मेहमानों में शोवलर, पिनटेल, गैडवल और पोचार्ड शामिल होते हैं। परिंदों का मुख्य अड्डा 15.53 वर्ग किलोमीटर में फैले नलबन में है। मगंलाजोड़ी, भुसंदपुर और कई अन्य जगहों पर भी पक्षी पहुंचते हैं। नलबन का इलाका पक्षी अभयारण्य के तौर पर घोषित है। वन विभाग के सूत्रों के आम तौर पर 170 प्रजातियों के कुल लगभग 9 लाख पक्षी चिलिका में पहुंचते हैं। इनमें से 4.05 लाख पक्षी तो केवल अभयारण्य क्षेत्र में ही आते हैं। उत्तर में कड़ाके की सरदी से बचने के लिए अफगानिस्तान, इराक, ईरान, पाकिस्तान, लद्दाख, हिमालयी क्षेत्र, मध्य एशियाई देशों, साइबेरिया आदि से परिंदे चिलिका में आते हैं। हर साल दशहरे के बाद से ही यहां पक्षी आने लग जाते हैं। फिर ये परिंदे गरमी की शुरुआत होते-होते लौट जाते हैं। आखिरकार प्रवास ढूंढना कोई छोटा-मोटा काम नहीं, कड़ी मेहनत लगती है इसमें। कल्पना कीजिए कि मंगोलिया से चिलिका आने वाले पक्षी पांच हजार से ज्यादा किलोमीटर की उड़ान बिना रुके पूरी करते हैं। है न हैरतअंगेज? इनके आगे सारी तकनीक फेल हैं। ऐसे परिंदों को उनके प्रवास में देखने का रोमांच अनूठा है।
कब, कहां, कैसेः चिलिका झील बहुत बड़ी है। यहां के परिंदों को देखने के लिए झीले में फैले पड़े कई द्वीपों पर या उनके करीब जाना होता है। जाहिर है कि वो केवल नावों से ही हो सकता है। नलबन के अलावा कालीजई आईलैंड, हनीमून आईलैंड, ब्रेकफास्ट आईलैंड, बर्ड्स आईलैंड व परीकुड आईलैंड भी देखे जाते हैं। चिलिका झील में पुरी से भी जाया जाता है लेकिन आम तौर पर डॉल्फिन देखने के लिए। प्रवासी पक्षियों को देखने के लिए रम्भा, बरकुल व सातपाड़ा सबसे प्रमुख जगहें हैं। यहां से झील में जाने के लिए नावें मिल जाती हैं। इन तीनों जगहों पर रुकने के लिए उड़ीसा पर्यटन के गेस्ट हाउस मौजूद हैं। सभी जगहों के लिए पुरी व भुवनेश्वर से बस व ट्रेनें बड़ी आसानी से मिल जाती हैं। भुवनेश्वर रेल व हवाई मार्ग से देशभर से जुड़ा है। अक्टूबर से अप्रैल का समय यहां जाने के लिए सबसे बेहतरीन है।
भारत के कुछ अन्य प्रमुख पक्षी अभयारण्य
- सालिम अली पक्षी अभयारण्य, गोवा
- कुमारकोम पक्षी अभायारण्य, वेम्बांड लेक, केरल
- रंगनथित्तु पक्षी अभयारण्य, कर्नाटक
- वेदंथंगल पक्षी अभयारण्य, कर्नाटक
- कौनडिन्या पक्षी अभयारण्य, चित्तूर, आंध्र प्रदेश
- मयानी पक्षी अभयारण्य, सतारा, महाराष्ट्र